Diya Jethwani

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लेखनी कहानी -06-Sep-2022... रिश्तों की बदलतीं तस्वीर..(13)

सुनील :- इस बारे में हम बाद में बात करें तो बेहतर रहेगा... अभी मुझे सिर्फ ओर सिर्फ परी की सगाई में कोई अड़चन ना आए वो देखना हैं...। 


ठीक हैं... आपकी मर्जी...। वैसे भी आज तक हमेशा आपने अपनी ही तो चलाई हैं...। 

बस करो सुजाता..... मेहरबानी करके फिर से वो ही सब बातें मत करो...। बड़ी मुश्किल से पीछा छुटा हैं मेरा.... वो भी मेरे बिना कुछ किए...। अभी तुम सिर्फ यहाँ की चिंता करो.... समझी...। 

सुजाता बिना कुछ बोले.... सोने के लिए बिस्तर पर चली गई...। 


माँ जी.... ओ माँ जी..... बस का आखिरी स्टाप आ गया.... सारे लोग भी ऊतर गए....। आपको यहीं उतरना हैं या कहीं ओर जाना हैं...! 

रमादेवी कंडेक्टर की आवाज सुनकर अचानक से अपनी नींद से जागी... नहीं... नहीं... बस यहीं उतरना हैं..। 

माँ जी.... अभी आपने अपना चेहरा क्यूँ ढक रखा हैं.. अभी तो कोरोना काल भी चला गया...! 

अरे वो मुझे चेहरे की कोई बिमारी हैं... डाक्टर ने बोला हैं...। 

ओहह.... तो आप यहाँ शाहपुर इलाज कराने आई हैं.. । 

हाँ हाँ बेटा.... मेरा बेटा यहाँ रहता हैं... उसने बुलाया हैं.... इलाज के लिए...। 

ओहह....आपको लेने तो आ रहा हैं ना माँ जी.... क्योंकि रात बहुत हो गई हैं..। 

हाँ... बेटा... वो आ रहा हैं... तु चिंता मत कर...। 

ठीक हैं माँ जी.. अपना ख्याल रखिएगा...। 

रमादेवी मुस्कुराती हुई उसके सिर पर हाथ फेरती हुई बस से नीचे उतर गई...। 

उसके उतरते ही बस वहाँ से चल दी....। 

अंधेरी रात....अनजान जगह... बस से उतरकर कुछ देर तक तो रमादेवी उस कंडेक्टर के बारे में सोच रहीं थीं.... एक अंजान को मेरी इतनी फिक्र हैं.... क्या मेरा बेटा भी मुझे खोजने निकला होगा...! नहीं नहीं.... मुझे नहीं लगता....। लेकिन सलोनी.... उसने तो जरूर धमाल मचा दी होगी...। लेकिन मैं ही तो उसे सच नहीं बताने को बोलकर आई थीं...। 

सोचते सोचते.... रमादेवी बस स्टैंड पर लगी हुई एक बैंच पर जाकर बैठ गई....। रात बहुत हो चुकी थीं...। बस स्टैंड पर इक्का दुक्का लोग ही थे..। रमादेवी उसी बैंच पर अपने अतीत के पन्नों को याद करते करते सो गई....। 

उसे वहाँ सोए कुछ ही मिनट हुवे होंगे की तभी वहाँ एक हवलदार आया... और बैंच पर डंडा बजाकर रमादेवी को उठाने लगा... ए माई.... उठ....। 

रमादेवी चौंक कर उठ गई.... :- क्या हुआ साहब...! 

यहाँ ऐसे सोना अलाउ नहीं हैं माई...। तेरा घर किधर हैं...!! 

घर.... घर तो नहीं है...। 

ओहह... लेकिन तुझे यहाँ पहले तो कभी नहीं देखा.... कहाँ से आई हैं...। 

रमादेवी ने झूठ बोलते हुए कहा :- पता नहीं साहब.... मुझे कुछ याद नहीं हैं...। कोई बस से यहाँ छोड़ कर गया...। 

बस से.... कौनसी बस से... कौन था...? 

मुझ कुछ याद नहीं साहब..। पता नहीं कौन था...। 

ए माई.... तु पागल है क्या... कोई तुझे छोड़कर गया... तुझे याद नहीं...। 

बिमार हूँ साहब... भूलने की बिमारी हैं.... सब भूल जाती हूँ...। 

ओहह.... यहाँ कोई हैं.... किसी को जानती हैं...! 

नहीं साहब....। मुझे आज की रात सोने दो.... कल चलीं जाऊंगी कही ओर...। 

लेकिन कहाँ जाएगी... तुझे तो कुछ याद भी नहीं रहता...। कैसे कहीं जाएगी....। तु चल ....मेरे साथ चल.... यहाँ पास में ही एक आश्रम हैं... वहाँ तुझे छोड़ देता हूँ...। 

नहीं.... नहीं.... साहब.... मैं यहीं ठीक हूँ... मुझे आश्रम नहीं जाना...। 

अरे... ऐसे यहाँ... सोना खतरे से खाली नहीं हैं...। तु चल आ...। 


बहुत बार मना करने के बाद भी वो हवलदार रमादेवी को एक वृद्धाश्रम ले आया...। वहाँ सारी बात बताकर उसे रहने के लिए एक कमरा दे दिया गया...। रमादेवी ना चाहते हुए भी वृद्धाश्रम में आ गई.....। हवलदार के जाने के बाद रमादेवी की आंखों से आंसू की धार बहने लगीं.... वो मन ही मन विचार करने लगी.... बेटा भी मुझे ऐसे ही किसी आश्रम में भेजने वाला था... उससे बचने के लिए मैं घर से इतनी दूर आ गई.... लेकिन किस्मत ने मुझे वहीं लाकर पटक दिया.... क्या हम बुजुर्गों के लिए सिर्फ वृद्धाश्रम ही एक जरिया बचा है.... अपनी जिंदगी काटने के लिए.. ।। 



क्या सच में रमादेवी वृद्धाश्रम में ही बाकी का जीवन बिता देगी... या किस्मत ने कुछ ओर ही लिखा था...! 

जानते हैं अगले भाग में...। 

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9 Comments

Pallavi

22-Sep-2022 09:37 PM

Beautiful

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Kaushalya Rani

21-Sep-2022 06:20 PM

Beautiful story

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Barsha🖤👑

21-Sep-2022 05:34 PM

Beautiful

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